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Mela gadari babya da Jalandhar

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इंकलाबी व आजादी के अंदोलन की विरासत को संजोए हुए-   मेला गदरी बाबेया दा   गदर पार्टी के शहीदों की याद में 30 अक्तुबर से 1 नवंबर का मेले का होता है आयोजन गुलशन उधम। जांलधर/जम्मू। सदीयों से मेले हमारी संस्कृति का प्रतीक रहे है। समय-समय पर मेले का आयोजन होता रहा है। अपने शहीदों , गुरूओं , पीरों-फकीरों की याद में मेले का आयोजन होता रहता है।  लेकिन इन सब में गदर पार्टी के शहीदों व इंकलाबी विरासत को समर्पित तीन दिवसीय मेला गदरी बाबेया दा अपनी एक अलग पहचान रखता है। पंजाब के जालंधर जिले में स्थित देशभगत यादगार हाल में 30 अक्तुबर से 1 नवंबर तक आयोजित होने वाले इस मेले में देश-विदेश के कोने-कोने से विद्यार्थियों , युवाओं , किसानों और मजदूरों के काफिले भाग लेने पहुंचते है और अपनी प्रस्तुतियां भी पेश करते है। भारत की आजादी के इतिहास में अहम योगदान देने वाले î हिंदुस्तान गदर पार्टी के शहीदों व इंकलाबी विरासत की याद में आयोजित किया जाता है। इसमें एक तरफ किताबों का मेला होता है और दूसरी तरफ इंकलाबी नाटक , गीत , भाषण कविता की प्रस्तुति। मेले में तीन दिन के लिए खान...

Manna alag baat hai aur janna alag

मानना अलग बात है और जानना अलग। मान लेना बहुत आसान होता है। उन्होंने कहा और हमने मान लिया। तुमने भी कहा कुछ संदेह हुआ, लेकिन हमने मान लिया, सूनी सुनाई बातों को मानना कोई मुशकिल नही होता। बहुत ही सरल है। लेकिन मानना अलग बात है और जानना अलग जानने के लिए तुम्हें तर्क  करना पड़ेगा, तुम्हें वस्तुगत होना होगा। जानने के लिए तुम्हें सबूत चाहिए और जो एक बार तुम जान गए तो फिर तुम्हें भ्रम नही रहेगा।                                           --गुलशन कुमार उधम