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Showing posts from August, 2018

हरिशंकर परसाई जयंती विशेष

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कोई पूछो परसाई जी से कि अवारा भीड़ के खतरे कब खत्म होंगे? 25 आगस्त (गुलशन उधम): 23 आगस्त को हिंदी जगत के प्रख्यात पत्रकार, लेखक व व्यंगकार हरिशंकर परसाई की 94वें जंयती मनाई गई। लेकिन जंयती मनाने के कार्यक्रम काफी सीमित ही रहे। हिंदी अखबार, वेबपोर्टल व कुछ सोशयो पोस्ट पर ही उनकी जयंती से जुड़ी जानकारी मिल पाई। जाने-माने पत्रकार व व्यंगकार होने के बाद भी देश का बड़ा हिस्सा उनसे पूरी तरह परिचित नही है। इसके लिए उनके एक लेख में लिखी लाईन याद आती है कि ’सच को भी प्रचार चाहिए होता है।’ जिसकी सच में जरूरत महसूस होती है। आप ने "प्रेमचंद के फटे जूते" कहानी स्कूल में या कहीं और पढ़ी ही होगी। अगर याद आया तो उसके लेखक का नाम भी याद करे। जी हां, ये कहानी हरिशंकर प्रसाई द्वारा लिखी गई है। मैं भी उनके बारे में ज्यादा पढ़ नही पाया हूं। लेकिन उनकी लेखनी को जितना भी पढ़ा है। वे उन्हें और अधिक पढऩे को उत्सुक करती है। उनके लिखे लेख, व्यंग आज भी समाज में स्टीक बैठते है। "हरिशंकर परसाई"नाम से फेसबुक पर एक पेज भी चलाया जा रहा है। जिस पर अक्सर उनके व्यंग पोस्ट किए जाते है। जो क...

Satire

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आज से आम के पेड़ का नाम जामून का पेड़ है।  (व्यंग)  आठ आगस्त  (गुलशन उधम):> मुझे  एक दम कलियर पता है कि ये आम का पेड़ है और हर बार इस पर आम लगेंगे। इसकी पत्तियां और टहनियंा चीख-चीख कर गवाही दे रही है कि ये आम का पेड़़ है। लेकिन अब मैंने इसका नाम बदल कर जामुन का पेड़ रख दिया है। और मैं ये चाहुंगा कि आप सब भी अब इसे जामुन का पेड़ ही कहे।  कोई न कहे तो मेरी बला से। मैंने ये मास्टरस्ट्रोक इसलिए किया है क्योंकि मेरी ये इच्छा थी कि यहां पर जामुन का पेड़ लगाया जाए। चंूकि घर के राजनितिक व आर्थिक सत्ता पिता के पास थी तो पेड़ लगाने के समय उनका ही फैसला पास हुआ था और घर के आंगन में आम का पेड़ लगा दिया गया। जिस दिन पेड़ लगा तो मुझ में बहुत आक्रोश था लेकिन मैं उस समय क्या कर सकता था। लेकिन अब सरकार द्वारा बार-बार नाम बदलने की योजनाओं से मेरी इच्छा को बल मिला है।  मैंने अब खुद से ही इस पेड़ का नाम बदल कर इसे जामुन का पेड़ करार कर दिया है। चाहें इससे पेड़ में किसी तरह की तबदीली न आए। हर साल इस पेड़ पर चाहें आम ही लगेंगे। लेकिन इस पेड़ का नाम बदल कर जो मुझे आंतरि...

Lecture report

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Feminism want equality, Love and peace Earlier there were Culture & Religious Patriarchy,  now there is Capitalist Patriarchy too Gulshan Udham Jammu, 06 Aug: Feminism is not for the fifty percent of the population but it is for the 100 percent of the population. This word comes from the French word. It comes to smash Patriarchy. If there is no patriarchy then there is no need of Feminism. These are the opening words of the Lecture of the Prominent Feminist and Social Activist Kamla Bhasin given in the Balraj Puri Memorial Lecture 2018. The lecture was being organized by Department of Sociology, Jammu University and Institute of J&K Affairs in the Brigadier Rajinder Singh Auditorium of Jammu University. The topic of the lecture is ‘Feminism and its relevance in South Asia’.  Further She said Patriarchy is unequal Social system in which superiority of dominance of Male is managed without any explanation and it is Global, One can see ‘T...