Satire

आज से आम के पेड़ का नाम जामून का पेड़ है। 

(व्यंग)
 आठ आगस्त  (गुलशन उधम):>
मुझे  एक दम कलियर पता है कि ये आम का पेड़ है और हर बार इस पर आम लगेंगे। इसकी पत्तियां और टहनियंा चीख-चीख कर गवाही दे रही है कि ये आम का पेड़़ है। लेकिन अब मैंने इसका नाम बदल कर जामुन का पेड़ रख दिया है।
और मैं ये चाहुंगा कि आप सब भी अब इसे जामुन का पेड़ ही कहे।  कोई न कहे तो मेरी बला से। मैंने ये मास्टरस्ट्रोक इसलिए किया है क्योंकि मेरी ये इच्छा थी कि यहां पर जामुन का पेड़ लगाया जाए। चंूकि घर के राजनितिक व आर्थिक सत्ता पिता के पास थी तो पेड़ लगाने के समय उनका ही फैसला पास हुआ था और घर के आंगन में आम का पेड़ लगा दिया गया। जिस दिन पेड़ लगा तो मुझ में बहुत आक्रोश था लेकिन मैं उस समय क्या कर सकता था। लेकिन अब सरकार द्वारा बार-बार नाम बदलने की योजनाओं से मेरी इच्छा को बल मिला है।
 मैंने अब खुद से ही इस पेड़ का नाम बदल कर इसे जामुन का पेड़ करार कर दिया है। चाहें इससे पेड़ में किसी तरह की तबदीली न आए। हर साल इस पेड़ पर चाहें आम ही लगेंगे। लेकिन इस पेड़ का नाम बदल कर जो मुझे आंतरिक खुशी मिल पाई है, वो जामुन का पेड़ लगाने पर भी  शायद न मिलती ।
अब सरकार गुडग़ांव को गुरूग्राम बना दे सकती है। मुगलसराय को पं दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन बना दे सकती है तो ऐसे में अपनी सरकार से हिम्मत लेकर अगर मैं आम के पेड़ का नामकरण जामुन का पेड़ कर दूं तो इसमें भला बुराई बुराई क्या है।  और इससे तो पिता भी खुश है और मैं भी।
बात अलग है कि सरकार द्वारा मुगलसराय जंक्शन स्टेशन का नाम बदलकर पं दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन करने पर एक नागरिक ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि जगह या स्टेशन आदि के नाम में फेरबदल करने से कितनी तरह की परेशानियां का सामना करना पड़ता है। इस बारे में सारी दनिया को सुचित करना पड़ता है। एकस्टेशन का नाम बदलने से सारी दुनिया का ट्रेबल साईटों व टाइम टेबल आदि को फिर से खुद को अपडेट करना पड़ता है। सारी टे्रनों के डिब्बों के नाम बदलने पड़ते है। सारे बोर्ड बदलने पड़ते है। रेलवे टिकट, रेलवे टिकट का साफटवेयर बदलना पड़ता है। इससे विदेश यात्रा करने वालों को दिक्कत होने की बात भी उन्होंने अपनी पोस्ट में कही गई है और न जाने कितनी समस्याओं से जूझना पड़ता है। इस सब में करीब 880 करोड़ रूपये खर्च होने का आसार बताया गया है । कितना सच है ये खुद करासचैक करे। उन्होंने अंत में लिखा है कि इससे सिर्फ शासन करने वाली पार्टियों को अपने इर्दगिर्द के लोगों को फायेदा पहुंचाने का मौका मिलता है।
लेकिन हमें या सरकार को इससे सबसे क्या?
अरे, जनाब। आंतरिक खुशी भी तो कोई खुशी होती है।
तो सब मिलक र कहे ये जामुन का पेड़ है।


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