और कितने एकलव्य
और कितने एकलव्य
और कितने
एकलव्यों की मांग करते हो
तुम?, द्रोण।
हमारे रगों में बहता लहू
तुमसे ये सवाल करता है।
हमारे नाम के आगे लगने वाला
शब्द "डॉक्टर "
तुम्हें क्यों अखरता है?
ये देश,
ये मिट्टी,
ये हवा
ये पानी
तुम्हारे बाप की
ज़ागीर तो है नहीं।
फिर क्यों
नरभक्षी बने हुए हो।
ये मत भूलों
कटे अंगूठे से बहता खून
अस्ल में बीज है।
जो मिट्टी में दबेंगे
और फिर उग आएंगे।
तुम्हारी सितम को
करेंगे चूर
एक दिन।
आमीन।
-Gulshan Udham ।
और कितने
एकलव्यों की मांग करते हो
तुम?, द्रोण।
हमारे रगों में बहता लहू
तुमसे ये सवाल पूछता है।
हमारे नाम के आगे लगने वाला
शब्द "डॉक्टर "
तुम्हें क्यों अखरता है?
ये देश,
ये मिट्टी,
ये हवा
ये पानी
तुम्हारे बाप की
ज़ागीर तो है नहीं।
फिर क्यों
नरभक्षी बने हुए हो।
ये मत भूलों
कटे अंगूठे से बहता खून
अस्ल में बीज है।
जो मिट्टी में दबेंगे
और फिर उग आएंगे।
तुम्हारी सितम को
करेंगे चूर
एक दिन।
आमीन।
-Gulshan Udham ।
और कितने
एकलव्यों की मांग करते हो
तुम?, द्रोण।
हमारे रगों में बहता लहू
तुमसे ये सवाल पूछता है।
हमारे नाम के आगे लगने वाला
शब्द "डॉक्टर "
तुम्हें क्यों अखरता है?
ये देश,
ये मिट्टी,
ये हवा
ये पानी
तुम्हारे बाप की
ज़ागीर तो है नहीं।
फिर क्यों
नरभक्षी बने हुए हो।
ये मत भूलों
कटे अंगूठे से बहता खून
अस्ल में बीज है।
जो मिट्टी में दबेंगे
और फिर उग आएंगे।
तुम्हारी सितम को
करेंगे चूर
एक दिन।
आमीन।
-Gulshan Udham ।
Comments
Post a Comment