poem

दरातियो की बैठक

फसल को काट कर
अभी फुर्सत मिली है
दरातियो को।
रही है देख
कटी फ़सलो को जाते हुए
मंडियों में ,
रही है जान
किरसानो कि उम्मीदों को टूटते हुए।
समझ रही है फर्क
किरसान और किसान के बीच का,
जमीन ज़मीदार की माँ है
या खेत जोतने वाले मजदूर किरसान की
ये भी रही है महसूस कर ।
बैठक में इस
नव उपनिवेशवाद, नव उदारवाद
की जड़े
उखाड़ फेंकने को ले कर
चर्चा गहरी हो चली है।

~गुलशन उधम।

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